The best Side of चमकौर का युद्ध

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Not to be bewildered with the main Struggle of Chamkaur, One more previous struggle in 1702 at a similar locale.

गुरु जी की तरफ से मैदान-ए-जंग में जूझते हुए शहीदी प्राप्ति के लिए की गई तैयारी और रहते महत्त्वपूर्ण पंथक कार्यों की पूर्ति के मुख्य रखते हुए पांच सिंहों ने गुरु-रूप होकर गुरुजी को गढ़ी छोड़कर चले जाने का आदेश दिया। खालसे का हुक्म मानते हुए गुरु जी वहां से निकल गए। मुगल सेना के लिए यह करारी चपत थी, क्योंकि इतनी बड़ी सेना तथा सात महीने तक श्री आनंदपुर साहिब को घेरा डालने के बावजूद शत्रु-सेना न तो गुरुजी को पकड़ सकी और न ही उन्हें अपने अधीन कर सकी।

उपरांत सरसा नदी पार करके गुरु जी रोपड़ के पास निहंग खान की गढ़ी (कोटला निहंग खान) में रुके और रात को आगे चल पड़े तो दुश्मनों की फौजों ने पीछा करना शुरू कर दिया। गुरुजी ने चमकौर की कच्ची गढ़ी में दाखिल होकर मोर्चाबंदी कर ली। गुरुजी के साथ बड़े साहिबज़ादे एवं पांच प्यारों सहित लगभग चालीस सिंह थे। दुश्मन की लाखों की फौज ने गढ़ी को घेरा डाल लिया। सारा दिन जंग होती रही। शाम तक गुरु जी के पास लगभग सारा गोली-सिक्का खत्म हो गया। अब सिंहों ने गढ़ी से बाहर आकर लड़ना आरंभ कर दिया। गुरुजी ने बारी-बारी बाबा अजीत सिंह जी और बाबा जुझार सिंह जी को पूरे अस्त्र-शस्त्र सजाकर मैदान-ए-जंग में भेजा। अंत बहादुर योद्धाओं वाले जौहर दिखाते हुए सिंहों सहित गुरुजी के दोनों बड़े साहिबजादे गुरुजी के सामने मैदान-ए-जंग में शहीद हो गए। गुरुजी के लिए सिंहों और सुपुत्रों के मध्य कोई अंतर नहीं था। गुरुजी ने दोनों साहिबजादों की शहादत पर चेहरे पर शिकन तक नहीं आने दी और अकाल पुरख का शुक्राना किया। लाखों की संख्या में शत्रु सेना मुठ्ठी भर सिंहों का हौसला कम करने की हिम्मत न कर सकी। श्री गुरु गोविंद सिंह जी की रणनीति कमाल की थी। दुश्मन फौज को चंद सिक्खों ने धूल चटा दी। यह अमृत की शक्ति थी कि खालसा फौज ने रणभूमि में कौशल दिखलाए।

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प्राइवेट आर्मी वैगनर के लड़ाकों ने शनिवार रात को रूस से अपने कैंप में वापसी की।

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यूक्रेन युद्धः पुतिन की विदाई का क्या काउंटडाउन शुरू हो गया है?

मॉस्को के मेयर को नागरिकों से घरों से बाहर न निकलने की अपील करनी पड़ी.

इसका सीधा मतलब ये होता कि सैनिक रूसी सेना के अधीन आ जाते, प्रिगोज़िन का उन पर कंट्रोल नहीं चमकौर का युद्ध होता.

साल भर से अधिक वक्त तक चले विरोध प्रदर्शन के बाद आख़िरकार सरकार ने तीनों कृषि क़ानूनों को वापस लेने की घोषणा की.

तनाव अपने चरम पर था और टकराव को रोकने की कोशिशें भी जारी थीं.

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